WORLD HOMOEOPATHY DAY CELEBRATION BY CCRH NEW DELHI


विश्व होम्योपैथी दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रुप में माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने दो दिवसीय वैज्ञानिक सम्मेलन का उद्घाटन किया। उन्होने कहा कि एक सरल और सुलभ उपचार पद्धति के रूप में होम्योपैथी को अनेक देशों में अपनाया गया है और लगभग 80 देशों में इस पद्धति का प्रयोग किया जाता है। पूरे विश्व में, अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर अनेक संस्थान होम्योपैथी के उपयोग एवं प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दे रहे हैं।
उन्होने आगे कहा कि इक्कीसवीं सदी में अनुसंधान का महत्व निरंतर और अधिक बढ़ता जा रहा है। होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की स्वीकार्यता तथा लोकप्रियता को और अधिक बढ़ाने में अनुसंधान और कुशलता की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। भारत में होम्योपैथी के प्रचार-प्रसार में योगदान देने के लिए में आयुष मंत्रालय, केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग, राष्ट्रीय होम्योपैथी संस्थान और ऐसे अन्य सभी संस्थानों की सराहना करती हूं। साथ ही, अनेक संस्थान होम्योपैथी के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। वे सभी संस्थान भी सराहना के पात्र हैं।
उन्होने होम्योपैथी की सुविधाएं और उपलब्धता पर कहा कि मुझे बताया गया है कि हमारे देश में होम्योपैथी की सुविधाएं प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। प्रशिक्षित चिकित्सकों की संख्या से लेकर अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना तक, सभी आयामों में प्रभावशाली प्रगति हुई है। लगभग एक दशक पहले शुरू किए गए ‘राष्ट्रीय आयुष मिशन’ के तहत भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के साथ-साथ होम्योपैथी की पहुंच और अधिक व्यापक हुई है। इस दौरान चिकित्सकों, अनुसंधान-कर्ताओं, औषधि निर्माताओं, शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं होम्योपैथी में रुचि रखने वाले कई लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। इस सम्मेलन का लक्ष्य है कि होम्योपैथी में अनुसंधान को सशक्त करना और दक्षता को बढ़ाया जाए।
“The two days of the symposium will see topnotch presenters sharing their research outcomes from various fields of science.”
Highlights
Homoeopathic research-based:
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Presentations
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Panel Discussion
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Exhibition of Homoeopathic Medicinal Products
Focus Areas
Effective communication and translation of:
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Clinical Research
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Drug Research
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Public Health Research
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Basic Research
Enriching sessions for
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Policy Makers
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Researchers
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Academicians
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Practitioners
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Students